Thinking shock

सिर्फ सत्रह दिन के अंतर पर नेपाल में आए दूसरे भूकंप ने इस गर्वीले पहाड़ी देश की जड़ें हिला दी हैं। मंगलवार को आए ताजा भूकंप के आफ्टरशॉक अभी जारी हैं, लेकिन इन भूकंपों ने कुछ झटके दुनिया की सोच को भी दिए हैं, जिन पर ज्यादा बात नहीं हो रही है। पहला तो यही कि हिमालयी क्षेत्र में जमीन के नीचे मौजूद खतरों की गंभीरता का पूरा अंदाजा अभी लिया ही नहीं जा सका है। भूकंप की तीव्रता के सवाल पर दुनिया के दो बड़े जियोलॉजिकल सेंटर आमने-सामने हैं।

अमेरिकी जियोलॉजिकल सर्वे रिक्टर स्केल पर इसकी तीव्रता 7.3 बता रहा है जबकि चीनी एक्सपर्ट्स के मुताबिक यह 7.5 रही। आम लोगों के लिए यह अंतर भले ही छोटा सा हो, पर जानकारों की नजर में यह अंतर काफी बड़ा है। दशमलव के हर अंक के साथ भूकंप की ताकत तीस गुना बढ़ जाती है, लिहाजा गणना में आए इस अंतर की अनदेखी नहीं की जा सकती। मगर, मामला यहीं तक सीमित नहीं है। विशेषज्ञों में इस बात को लेकर भी मतभेद है कि दूसरे भूकंप को आफ्टरशॉक माना जाए या स्वतंत्र भूकंप के रूप में देखा जाए। अब तक यह माना जाता रहा है कि भूकंप की किसी बड़ी घटना के बाद महीनों तक आफ्टरशॉक आते रहते हैं, लेकिन धीरे-धीरे कमजोर पड़ते-पड़ते ये खत्म हो जाते हैं।

नेपाल ने इस मामले में भी विशेषज्ञों को झटके दिए हैं। वहां दो हफ्ते पहले आए 7.9 तीव्रता वाले भूकंप के बाद आफ्टर शॉक्स की तीव्रता अचानक बढ़ जाती रही। जैसे, बड़े भूकंप के आधे घंटे बाद 6.6 का एक ताकतवर ऑफ्टरशॉक आया, फिर 4 से 5.5 की तीव्रता वाले कई झटके आए, लेकिन अगले दिन दोपहर में ही अचानक 6.7 की तीव्रता वाला जोरदार ऑफ्टरशॉक आ गया, जिसने औरों के अलावा एक्सपर्ट्स को भी हिला दिया। उस समय उन्होंने इसे अपवाद बताते हुए कहा कि यह थोड़ा अलग सा मामला जरूर है पर अनोखा नहीं। अब जब सामान्य होती स्थितियों के बीच साढ़े सात की तीव्रता वाला भयंकर भूकंप आ गया तो विशेषज्ञों की बोलती बंद है।

अगर इसे नया भूकंप माना जाए तो भी यह अत्यंत दुर्लभ की श्रेणी में रखा जाएगा। यह इस बात का सबूत है कि इस इलाके में जमीन के नीचे कुछ ऐसा चल रहा है, जिसके बारे में दुनिया के पुराने अनुभवों के आधार पर कोई अंतिम बात नहीं कही जा सकती। ऐसे में भारत को अपने हिमालयी क्षेत्रों और पंजाब से लेकर असम तक के मैदानी राज्यों (जिसमें दिल्ली-एनसीआर भी शामिल है) को बड़े से बड़े भूकंप के लिए तैयार रखना चाहिए।

इस इलाके में हर बड़े निर्माण के लिए कुछ ठोस मानक तय किए जाने चाहिए और किसी को उनसे जरा भी इधर-उधर जाने की इजाजत नहीं देनी चाहिए। हिमालयी क्षेत्र में बनने वाली सभी जल विद्युत परियोजनाओं पर सबसे ज्यादा गौर किया जाना चाहिए और बिल्डरों-डिवेलपरों को एनजीटी जैसी जिम्मेदार संस्थाओं के आदेश अक्षरश: मानने के लिए मजबूर किया जाना चाहिए। सभी इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के हर पहलू को सरसरी तौर पर जांच लेना चाहिए और जहां भी इनमें सुधार की गुंजाइश हो, वहां बेझिझक कर दिया जाना चाहिए।

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